खिला है आज गुलमोहर, बड़ा ये मुस्कुराया है,
हरिक पत्ता लहरता सा, हरिक गुल खिलखिलाया है |
महकती सी सजी वसुधा फ़ज़ा बहकी हुई सी है,
हरिक कण आज आन्दित, मृदा महकी हुई सी है,
धरा पर आज देखो तो, नशा अद्भुत सा छाया है |
करें करलव विहग देखो, हैं बैठे शाख पर इसकी,
रही है झूम हर डाली, खिली है हर कली इसकी,
लगे ऐसे, धरा ने गीत प्यारा गुनगुनाया है |
बड़ी सुंदर छटा देखो, उषा सजती है सिन्दूरी,
लिए रक्तिम सी आभा संग, आई भोर चित्तचोरी,
सुगंधित सा ये गुलमोहर, मधुर मधुमास लाया है |
खिले ये पुष्प गुलमोहर, हरिक दिल को लुभाते हैं,
भले ये मूक हैं फिर भी, बहुत कुछ ये सुनाते हैं,
खिलाकर गुल प्रभू तुमने, धरित्री को सजाया है |