आज़ाद परिंदे: भावना ठाकर द्वारा रचित कविता


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महसूस किया है कभी पिंजर के भीतर तड़पते परिंदे का दर्द जो तकता है उम्मीद भरी नज़रों से मुक्त आसमान की ओर..
आज़ादी की आस में नम नैंनों से तकती आँखों में एक किरकिरी पनपती रहती है साहब अपने हिस्से के गगन को तलाशती..
दिल से सुनों जो हर पुचकारने वाले से मौन चित्कार में चिल्लाते कहता है परिंदा, क्या मुझे हक नहीं आसमान में उड़ने का परिंदे आज़ाद ही अच्छे..
बंधन का सुख नहीं मुझे मुक्ति का मार्ग दे दो, अपनी बस्ती का अनुरागी हूँ, घुटता है दम इंसानी जिह्वा का आनंद बनकर अपनों से मिलने की अनुमति दे दो..
डार-डार, पात-पात बैठूँ यायावर सा इत-उत उडूँ शाख-शाख की टहनियों पर अपनी ऊँगली के निशान छोडूँ..
अपने शौक़ को पालने की आड़ में ए इंसान पर क्यूँ मेरे काट दिए, परवाज़ दो मेरे वजूद को है आसमान मेरा बसेरा…
दे दो मुझे उपहार में गगन गोश मेरा डेरा, पिंजर आपका ले लो वापस दिल ज़ार-ज़ार है रोता।

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