in

नज़दीकियां: रफीका रंगवाला द्वारा रचित कविता

जिस्मानी फासले बढ़ रहे हैं हमारे तुम्हारे दरमियां
फिर भी यकीनन नज़दीकियां बढ़ रही है दिलों में हमारे

क्यों करते हैं इंतजार हम तुम्हारी एक झलक पाने का?
क्यों चुपके से रखते हो हमारे रुखसार पर नजर जरा सा दिख जाने पर?

नज़दीकियां इतनी होने पर भी क्यों हम फासलों में कैद है ?
दुनिया से डर है या और कोई भेद है  ?
तन्हा तन्हा रहना  आदत बन गई है हमारी
दूरियां नज़दीकियों में क्यों नहीं बदल रही है हमारी ?

फासले चाहे कितने भी रहे हमारे तुम्हारे दरमियां
नज़दीकियां फिर भी हम तक पहुंच जाएगी किसी छोटे झरोखे से हवा की तरह 

फासलों ने हीं नजदीकियां बढ़ाई है
 फिर से उन दूरियों की तलब मुरझाई है

बेमानी सी लगती है नजदीकियां
यदि प्रेम की भावनाओं का समावेश ना रखे नजदीकियां